थारू जनजाति के लोग निर्धनता, अशिक्षा एवं पर्यावरणीय अस्वच्छता के कारण विकास की पहली सीडी पर जीवन यापन कर रहे हैं। तराई में आगमन के प्रारम्भिक वर्षों से इनका प्रमुख व्यवसाय वनोत्पाद एकत्रीकरण एवं आखेट तथा निवास पेड़ों पर था जबकि भोजन के लिये वनोत्पाद एवं आखेट पर निर्भर रहते थे। कालान्तर में विकास एवं पड़ोसी समाजों के सम्पर्क के परिणामस्वरूप इनकी इस जीवन प्रणाली में बदलाव आया। अब कुछ लोग कृषि में आधुनिक यंत्रों एवं तकनीकी का प्रयोग कर पर्याप्त उत्पादन प्राप्त करते हैं। किन्तु निर्धनता एवं अज्ञानता के कारण आज भी अधिकांश लोग प्रारम्भिक प्रकार की कृषि कर रहे हैं तथा इनके पशु भी उत्तम नस्ल के नहीं हैं जिससे अप्रोत्पादन तथा दुग्धोत्पादन अतिन्यून होता है।
सम्पूर्ण थारू क्षेत्र में राष्ट्रीय मार्ग एवं नगरीय क्षेत्र के निकट शिक्षा एवं जागरूकता के कारण जनसंख्या का बसाव अधिक है। जबकि दूरस्थ क्षेत्र अशिक्षा एवं जागरूकता के अभाव के कारण विरल बसे हैं। क्षेत्र में स्वच्छ पेयजल, बिजली शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़क जैसी सुविधाओं का विशेष अभाव है। यद्यपि क्षेत्र में केन्द्र, राज्य एवं जनजातीय विकास सम्बन्धी अनेक योजनायें क्रियान्वित है किन्तु लोगों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है।
थारू लोग अपने भोजन में स्थानीय उत्पादों का उपयोग अधिक करते हैं, क्योंकि निर्धनता एवं उपलब्धता के अभाव में ये लोग नगरीय क्षेत्र के भोज्य पदार्थों का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। अत कठिन परिश्रम करने एवं उचित पोषण के अभाव के कारण ये शारीरिक रूप से कमजोर रहते हैं। बीमार होने पर आज भी ये लोग स्थानीय वैद्य एवं जादू टोनों में अधिक विश्वास रखते हैं। इस प्रकार थारू जनजाति की पोषण एवं स्वास्थ्य की स्थिति अत्यन्त खराब है जो कि प्रस्तुत शोध ग्रन्थ की मूल संकल्पना का विषय बना है।
प्रस्तुत पुस्तक में भारत एवं उत्तराखण्ड में अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या का वितरण लिगानुपात साक्षरता तथा व्यवसायिक प्रतिरूप का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में उत्तराखण्ड के ऊधमसिंह नगर जनपद में थारू जनजाति के पोषण एवं स्वास्थ्य स्तर का भौगोलिक अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन को पूर्ण करने के लिए ऊधमसिंह नगर जनपद के सितारगंज एवं खटीमा विकास खण्डों के 22 गाँवों का न्यादर्श के रूप में चयन किया गया है।
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