यह पुस्तक मुख्यतः ग़ज़लों का संकलन है और कुछेक चुनिंदा कविताएं भी सम्मिलित की गयी हैं। इसमें कुछ गीत या क्षणिकाएँ भी आपको मिलेंगी।
प्रस्तुत समस्त लेखन सामग्री एक लेखक की भांति सोंच-विचार कर लिखने की कोशिश की गई है, उम्मीद है आप सब भी इसे एक पाठक की भांति ही पढ़ेंगे।
मैं लेखन में कई विधाएं लिखने की कोशिश करता हूँ, जिनमें से ग़ज़ल विधा मुझे सबसे ज़्यादा पसन्द है, किसी बड़ी बात को दो लाइनों में कहने का मज़ा ही कुछ और है… ग़ज़ल लिखने का एक तरीका होता है कि उसको किसी बहर में लिखा जाता है, जिसे मात्रिक गणनाओं का मीटर कह सकते हैं, मैं उस मात्रिक गणना को नहीं सीख सका क्योंकि उसको किसी उस्ताद से सीखना पड़ता है जिसके लिए मेरे पास अनुकूल समय व परिस्थितियां नहीं है, पर मैंने ग़ज़लें काफ़ी पढ़ी-सुनी हैं इसलिए मैंने उसकी लय(रिदम) पकड़कर लिखने की कोशिश की है और अगर किसी लय में कोई रचना की जाती है तो अधिकतर पाठक को समझने में सहूलियत होती है।
“माना कि मैं बे’बहर का कोई रचनाकार हूँ,
वो ज़मीं होगी तुम्हारी, इसका मैं आधार हूँ।”
मैंने अपनी ग़ज़लों में किसी मीटर का प्रयोग नहीं किया है इसलिए ग़ज़ल के जानकारों द्वारा किसी तरह की कोई त्रुटि मेरी ग़ज़लों में पाई जाती है तो वह स्वीकार्य होगी।
बात करते हैं कुछ मात्रिक त्रुटियों की, मैंने ख़ास ध्यान रखा है इस बात का कि कोई मात्रिक त्रुटि न हो, फ़िरभी अगर पाएं तो क्षमा चाहूँगा। कि को के, बहुत को बहोत, लफ्ज़ को लफ़ज़, मेरी को मिरी, दीवार को दिवार, सामान को समान, रखा को रक्खा और भी बहोत शब्द ऐसे मिल सकते हैं आपको, जो कि मेरे लिखने का तरीका और ग़ज़ल में मान्य हैं, तो इन्हें मात्रिक त्रुटियों से बाहर रखें…
मेरी सामर्थ्यानुसार मेरा लेख प्रस्तुत है, उम्मीद है आप सबको मेरी कोशिश पसन्द आएगी।
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