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Jagat Srasti Se Aj Tak, Bhag- 12, Adhunik Kal Ke Sant – Mahapurush ( Janmtithi Ke Anusar – January Se December Tak )

978-93-6252-253-5 PAPERBACK FIRST EDITION , ,

Meet The Author

मानव जाति की विकास यात्रा में संतों, महापुरुषों के संघर्षों का विशेष योगदान रहा है। इसलिये कि युगों के ऐतिहासिक प्रभावों ने उन्हें नहीं बदला बल्कि स्वयं संतों, महापुरुषों ने युग बदल दिये। यही नहीं, आने वाले युगों के लिये वे युगदृष्टा भी बने। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की स्वस्थ परंपराओं को आगे बढ़ाया। जहां संत काव्य-धारा में ऊर्जा आई वहीं आम आदमी के अंदर शक्ति का संचार हुआ। मानवीय संबंधों में नवीनता का सृजन हुआ।

किसी देश के साहित्य का इतिहास विचारों तथा उसके वैज्ञानिक और कलात्मक प्रतिरूपों का इतिहास है, पर हमारे भारत देश में ऐसा नहीं रहा। यहां ज्ञान, ध्यान तथा साहित्य व संस्कृति पर अलग-अलग जातियों तथा धर्मों का प्रभाव रहा है और आज भी है। हालांकि बाबासाहेब डा० आंबेडकर ने इस संबंध में कहा है, कभी भी संतों ने जाति-प्रथा पर हमला नहीं किया। इसके विपरीत वे जाति-प्रथा में अटल विश्वास रखते थे। उन्होंने कभी जाति अस्पृश्यता के खिलाफ कोई संघर्ष नहीं किया। उनका संबंध मानव और ईश्वर के रिश्तों से था। सभी मानव एक समान हैं, ऐसा उन्होंने कभी प्रतिपादित नहीं किया। इस प्रकार संत कभी भी समाज में गौरवपूर्ण उदाहरण नहीं बने। वे सदा सम्मानित ही बने रहे।

‘जगत सृष्टि से आज तक’ की श्रंखला की यह 12वीं एवं अंतिम पुस्तक है। इस पुस्तक में सभी जातियों एवं धर्मों के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संतों, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक क्रांतिकारी महापुरुषों, बौद्ध भिक्षुओं, शिक्षाविदों आदि का उल्लेख किया गया है। सभी जातियों और धर्मों के संतों महापुरुषों का जीवन संघर्ष लिखने का लेखक का मुख्य उद्देश्य यह है कि वे एक दूसरे जाति और धर्म के महापुरुषों के जीवन संघर्ष को एक साथ जान सकें। प्रायः दलित साहित्य लेखन में दलितों और पिछड़ों के अलावा अन्य जाति धर्म के महापुरुषों का जीवन संघर्ष एक साथ पढ़ने को नहीं मिल पाता। इस पुस्तक में कुल 134 सतों, महापुरुषों का उल्लेख तिथिवार जन्म दिवस के अनुसार (माह जनवरी से माह दिसम्बर, तक) करने का प्रयास किया गया है जिससे उनका जीवन परिचय के साथ उनके जन्म दिवस और निधन / निर्वाण की तिथि को आसानी से जान सकें। इन 134 में अनुसूचित जाति के 47, पिछड़ी जाति के 28, ब्राह्मण 25, ईशाई 8, कायस्थ 7. मुस्लिम 6, बौद्धभिक्षु 6, अन्य 2, क्षत्रिय 1, वैश्य 1, सिख 1, अश्वेत 1, पारसी 1 है। आशा है कि पाठकों के लिये यह पुस्तक काफी लाभदायक सिद्ध होगी।

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