यह पुस्तक गुरु परंपरा, कमम, ज्ञान, भक्ति, धमम, ध्यान और आत्म-प्राक्ति की प्रमुख अवधारणाओंमेंअंतर्दमष्टष्ट प्रदान करती है। यह इन ष्टिक्षाओंको ष्टकसी के दैष्टनक जीवन में कैसेिाष्टमल ष्टकया जाए और आध्याक्तत्मक पथ पर बाधाओं को कैसेदूर ष्टकया जाए, इस पर व्यावहाररक मागमदिमन भी प्रदान करती है। अष्टावक्र गीता अक्तस्तत्व की आध्याक्तत्मक प्रकृष्टत और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अथम की जांच करती है। इस पुस्तक की प्रस्तुष्टत
समझाती हैष्टक, ब्रह्ांड की संपूणमता इस वास्तष्टवकता की अष्टभव्यक्ति है, सब कुछ आपस मेंजुडा हुआ है, और आत्मा एक ही है, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता अंष्टतम ष्टबंदु नहींहै, बक्ति एक प्रारंष्टभक ष्टबंदुहै।
श्रीमद्भगवत गीता और अष्टावक्र गीता: दोनों “आध्याक्तत्मक जीवन” के ष्टलए व्यावहाररक मागमदष्टिमका हैं। यह पुस्तक एक व्यापक और सुलभ पुस्तक है जो पाठकों को श्रीमद्भगवत गीता और अष्टावक्र गीता की आध्याक्तत्मक ष्टिक्षाओंके ष्टलए एक व्यावहाररक मागमदष्टिमका प्रदान करती है।
इस पुस्तक मेंश्रीमद्भगवत गीता और अष्टावक्र गीता की ष्टिक्षाओंको रोजमरामकी ष्टजंदगी मेंलागूकरनेपर ध्यान देनेका सात अध्यायोंमेंगहराई सेअन्वेषण ष्टकया गया है।
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