लिखना मेरा पेशा नहीं है, बस एक शौक है । जब कभी किसी को कहते सुनती हूँ कि ‘फलाना खुद तो देर से आता है पर हमें समय पर आने को कहता है’ या ‘ढ़िमाके ने स्त्री-अधिकार के बारे में काफी अच्छी बहस की, पर घर में आकर बीबी को पीटता है‘ या फिर ‘अरे! ये तो निरा झूठा है, जब देखो ऑफिस से छुट्टी लेकर भाग जाता है । आज तो उसने हद कर दी । कल आया नहीं था पर उसने कल का दस्तखत कर दिया ।’… ‘ये राजनीतिक लोग भी अजीब है, कहते हैं सड़क बनवाएंगे… बिजली मुफ्त में दिलवा देंगे … अनाज सस्ता हो जायेगा …गुंडागर्दी बंद करवा देंगे’ …वगैरह वगैरह…मम्मियां चिल्लाती हैं बच्चों पर ‘फ़ोन रखो, पढाई करो, कार्टून मत देखो, यूट्यूब बंद करो, तुम्हें पड़ोसी के बच्चे की तुलना में नंबर कम क्यों मिला ?’ …तमाम तरह की विसंगतियों से भरा यह जीवन है । सोचा टीवी देखूं —पर शांति कहाँ ? वही लुच्चा लपाड़ा-पना…रेप…खून…दल-बदल … कहाँ जाऊँ… क्या करूँ … बिडम्बना है कि हमें लगता है हम विरोधों में जी रहे हैं । मुझे गाँधी, रवीन्द्र, सुभाष महापुरुषों से कोई सरोकार नहीं । समाजवाद, लोकतंत्र, गणतंत्र, पूंजीवाद और तानाशाह किसी से कोई मतलब नहीं है । मैं तो तिकड़मों, भ्रष्टाचारियों, धोखेबाजों से बचना चाहती हूँ, पर फंस जाती हूँ। अरे! मैं कहाँ नीति की बात लेकर बैठ गयी ! मैं तो आम आदमी की अकुलाहट और व्यथा की निर्रथकता से बचना चाहती हूँ, मुझे समाधान चाहिए ।
इस समाज व्यवस्था को असंगतियों, विसंगतियों, दोगलापन और अन्तर्विरोधों का अजायबघर कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । कल कोई बता रहा था कि अमुक ने साल-दर-साल इतना क़र्ज़ा लिया कि अब वह भिखारी हो गया, फिर उसका तो पिट गया दीवाला और उसने कर ली आत्महत्या । मुझे समझ नहीं आया ये किस तरक़्क़ी का नया फ़ार्मूला है और किसने इसे ईज़ाद किया है? क्या हुआ था ? कुछ नहीं, बस झूल गया पंखे से ! मुझे इनसे कोई सहानुभूति नहीं होती है ! मैं क्या असंवेदनशील हूँ ? पता नहीं! मुझे लगता है आप तो चले गये अब बीबी बच्चे क्या करे? सिर पीटे ? चार-जन आयेंगे, कंधे पर चढ़ाएंगे फूंकेगे, कुछ सहानुभूति दिखाएंगे वापस चले जायेंगे । ज्यादा से ज्यादा होगा तो कुछ नसीहते देने से भी नहीं चूकते । फिर वक्त बीतेगा । और समय आयेगा तो स्त्री को ही लड़ना पड़ेगा , बंदूक भी उठानी पड़ेगी, और बाज़िब तौर पर उसे कुछ कड़े कदम भी उठाने पड़ेंगे । उनके खिलाफ कुछ फैसले भी लेने पड़ेंगे जो उसे कमजोर समझ कर नसीहते दे रहे थे ।
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