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मन का मंथन

978-93-6252-534-5 PAPERBACK FIRST EDITION , ,

Meet The Author

“बिना बवचारे जो करे सो पाछे पछताए,
काम बिगारे आपनो जग में होत हसाए I”
आज के दौर में जीवन की रफ्तरर करफी तेज हो गई है और
जनसांख्यर की वृद्धि की वजह से भीड़ है, और उसके कररण
प्ततस्पर्राहै, जहरां लोगोां के परस सोचने की समझ और समय नहीां है,
इतने भौततकवरदी हो चले हैं की भरवनरओां को कमजोरी की उपमर
मरन तलयर गयर है I फलस्वरूप मरनतसक तनरव, सांबांर् तवच्छेद,
पररवररोां कर अांत और आत्महत्यर आतद बढ़ रहे हैंI जबतक थोड़र सर
ठहर कर तवचरर करने से अनुभवोां की अनुभूतत होती है, और तकसी
कर गलत करने से यर मन दुखरने से बचर जर सकतर हैI तवचररशील
होनर सृजनरत्मकतर की जरूरत है Iअततशय तवचररोां में लगरम छू टने
पर मद्धिष्क मेंर्ुांर्लरपन हो जरतर है, यहरां कभी तो वैररग्य यर कभी
अपनोां के स्नेह की आवश्यकतर होती हैI तवचररोां की ऐसी अलगअलग लीलरओां कर कतवतरओां में तचत्रण है I एकरकीपन के भरव कर
प्दशान, कु छ अवसरद और उससेउभरनेकर प्यरस है I

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