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ताम्रलिप्त की राज कहिनी

978-93-6252-511-6 HARDBIND FIRST EDITION , ,

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इलतहास गवाह है। महेन्द्र संघलमत्र को िेकर ताम्रलिप्त (तमिुक)
बंदरगाह मेंिगभग तीसरी शताब्दी मेंसम्राट अशाक आयेथे। जापान के
राज पुस्तकािय मेंताम्रलिप्त के मपूर राजवंश की कथा बार-बार उल्लेखखत
लकया गया है। अंगेज इलतहासकार इन्टर नेकहा हैलक महाभारत युग के
लवष्णुभक्त राजा मयूरव्यज नेही इस राजवंश की प्रलतष्ठा की थी। राजघरानेमें
इस राजवंश की वंश-तालिका है। ताम्रलिप्त नगर समुदी यालत्रयों का प्रमुख
स्थान था। इसी बन्दरगाह सेराजवंशीय बहादुर सेना भारत मेंदीप महासागर
उपलनषेश स्थालपत करनेमेंसफि हुआ था। बौद्रयुग के पहिेजावा द्वीप एवं
वालि द्वीप नेलहन्दूउपलनवेश स्थालपत लकया था।
बमी और लकं वदंती के अनुसार उक्किवा शहर के व्यापारी तपोसा एवं
बािेकाता कहिातेथेजो आजेत्ता और सूयामा के बन्दरगाह मेंउपखस्थत हुए।
इसके बाद शाही महि मेंपहु
ुँ
चकर भगवान तथागत के साभात् दशनन रूपी
िाभ को प्राप्त लकये। लवशेषज्ञो के अनुसार उक्किया, आजेत्ता एवं सूयामा
कमानुसार उत्किदेश ताम्रलिप्त एवं शुम-देश के अिावा दूसरा कुछ भी नही
है। लनिः संकोच कह सकतेहैंलक आलथनक और सांस्कृलतक मेि के कारण
राष्ट्रीय यातायात के मागनसुगम हो गये, िेलकन ताम्रलिप्त के अतीत अवशेष
छलव को देखनेके लिए हमेअभी भी चीन राज्य का ही सहारा िेना पड़ता है।
कुरुक्षेत्र के युद्धकाि मेंदुयोधन के सेनाओं की तालिका मेंताम्रलिप्त के
सैलनको का उल्लेख लमिता है।

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